तीज त्यौहार या हरियाली त्यौहार ओरत की प्रेम शक्ति के वैभव को दर्शाता है|
2025 में तीज त्यौहार को मनाने की शुभ तिथि
27 जोलाई 2025, दिन -रविवार
पूजा का शुभ मुहर्त -(27 जोलई) सुबह का समय (06:00) बजे से – दोपहर (12:00) तक
तीज त्यौहार केवल नाम का ही नही बल्कि ये त्यौहार हर उस ओरत की दिल की बात को बयान करता है जोकि अपने पति को प्रेम करती है – वो भी बिना किसी शर्त के।
ये त्यौहार अपने साथ बहुत खुशियाँ लाता है। उन सभी औरत के लिए जो अपने पति पर समर्पण रहती हैं और उनको हमेशा प्रेम भाव से हर बात को स्वीकार करती हैं। इस दिन सभी ओरते व्रत रहती हैं और माँ पार्वती इस बलिदान की कथा को सुनती हैं। कैसे माँ ने पति को पाने के लिए घोर भक्ति की और कितना बलिदान किया।
तीज त्यौहार को लेकर हिन्दू धर्म में एक कथा सदियों से परचलित है। ऐसा माना जाता है की माँ पार्वती ने भगवान् शिव को अपने पति रूप में पाने के लिए घोर भक्ति की। माँ पार्वती के १०८ जन्म लेने के बाद भगवान् शिव ने उनकी भक्ति से ख़ुश होकर माँ पार्वती को अपनी पत्नी रूप में अपनाया था। इसी महान मिलन के बाद से ये तीज त्यौहार मनाया जाता हैं। ये समर्पण, साधना और प्रेम का प्रतिक हैं।
इसलिए हर साल सभी औरत इस दिन का इंतज़ार करती हैं और बड़े ही प्रेम भाव से अपने अपने पति के लिए व्रत रकते है।
तीज त्यौहार कैसे मानते हैं।
गांव में सभी औरत एक साथ मिलकर मेहंदी लगाती और एक साथ झूला-झूलती व गाने गाती है
ये त्यौहार कई दिन तक मनाया जाता हैं। रोज सभी मिलकर खूब मौजूद मस्ती करती हैं और नये नये समान खरीदते हैं।
हमारे लिए यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि हमारे शरीर के अंदर जो सूक्ष्म केंद्र है, मैं आखिरकार होते क्या है। हमारे शरीर के अंदर एक सूक्ष्म ऊर्जा तंत्र काम करता है जिन्हें हम सब 7 चक्र के नाम से जानते हैं। चक्र का मतलब होता है घूमने या कोई घूमने वाली वस्तु। हमारा शरीर केवल मांस व हड्डियों का कंकाल ही नहीं बल्कि अनेक तरह के ब्रह्मांड लोक में ऐसी शक्तियों का भंडार है। 7 चक्र हमारे जीवन को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
चक्र क्या है?
हमारे शरीर के अंदर एक बहुत सूक्ष्म ऊर्जा तंत्र जिसे जानना हम सबके लिए बहुत जरूरी है। यह सातों चक्र ही इस सूक्ष्म ऊर्जा तंत्र का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है। चक्र चक्र घूमती हुई उसे जगह केंद्र होता है जो हमारे जीवन की हर सेकंड को प्रभावित करता है। शुरू में यह सब सुना बकवास या काल्पनिक लगता है, परंतु या पूर्ण सही है और ऐसा संभव है लड़की मनुष्य की रचनाओं की इस प्रकार से की गई है यदि हम चाहे तो दूर-दूर तक पहले इस ब्रह्मांड के साथ अपना संबंध बना सकते हैं और इसका भरपूर आनंद अपने जीवन में ले सकते हैं। यह चक्र सोचने से लेकर स्वास्थ्य इच्छा और संबंधों तक हमें प्रभावित करते हैं। आयुर्वेद का योग मानता है हमारे शरीर में सात चक्र मुख्य होते हैं। यह चक्र रीढ़ की हड्डी मेरुदंड के आधार से लेकर सिर के शीर्ष तक विराजमान होते हैं।
7 चक्र का संतुलन अत्यंत आवश्यक है ताकि हम मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रह सकें।
आध्यात्मिकता में 7 चक्र का महत्व अद्वितीय है।
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7 चक्र के माध्यम से हम अपनी ऊर्जा को पुनः सक्रिय कर सकते हैं।
सूक्ष्म केंद्र या चक्र
अगर निचले केंद्र से शुरू करें तो इसका वर्णन ऐसे होता है।
1. मूलाधार चक्र( ROOT CHAKRA)
चक्र हमारे शरीर का सबसे पहले चक्र होता है और हमारी नीव इसी चक्र से जुड़ी होती है। इसे मूलाधार चक्र (मूल चक्र ) या ‘गुदाचक्र’ भी कहा जाता है।
इसे आध्यात्मिक दृष्टि कौन से संत महात्माओं ने कर चार कमल दल भी गया है। यह चक्र मलद्वार के पास विमान होता है यह मल त्याग करने के कार्य की व्यवस्था को देखता है। इन सभी केदो का आकार कमल के फूल के समान होता है।
स्थान :- मेरुदंड का निचला भाग(गुदा स्थान )
रंग :- लाल
तत्व :-पृथ्वी
फायदा :- 7 चक्र के संतुलन से स्थिरता, सुरक्षा, अस्तित्व और आत्मविश्वास का अनुभव होता है।
संतुलन होने पर विपरीत परिस्थिति देखने को मिलती है।
बीज मन्त्र :- LAM
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यह चक्र मूलाधार चक्र से ऊपर की ओर का दूसरा चक्र होता है। इस जगह को लिंग चक्र भी किया जाता है। इसे अन्य नामो से भी जाना जाता हैं – जैसे इंद्रीय चक्र आदि। यह नाड़ीजाल (SACRAL PLEXUS ) के पास विराजमान होता हैं। इसका संबंध प्रजनन से होता हैं।
स्थान :- नारंगी
तत्त्व :- जल
फायदा :- यह चक्र हमारी भावना रचनात्मकता के संबंधों से जुड़ा होता है। इसके सक्रिय होने पर प्रेम का भाव होना शुरू होता है। असक्रिय होने पर विपरीत प्रभाव देखने को मिलता हैं।
बीज मंत्र :-
3.मणिपुर चक्र ( SOLAR PLEXUS CHAKRA)
तीसरी चक्र को नाभि चक्र के नाम से भी जाना जाता है। इस चक्र की आठ पखुडिया होती है। इसका संबंध सीधे हमारे पेट से होता है या यह हमारे पोषण के कार्यों की व्यवस्था करता है।
स्थान :- नाभि के ऊपर
रंग :-पीला (Yellow)
तत्व :- अग्नि
फायदा :- आत्म बल, नियंत्रण आदि। यह जगह हमारी इच्छा शक्ति और निर्णय लेने की शक्ति से जुड़ा होता है।
बीज मंत्र :-RAM
4.अनाहत चक्र (HEART CHAKRA )
अनहद चक्र हृदय चक्र यह चौथा सूक्ष्म केंद्र है इसका संबंध खून के दौरे और हमारी सांस क्रिया के साथ होता है क्योंकि हृदय स्वास तंत्र का भाग है।
स्थान:- हृदय वाला भाग
रंग:-हरा (Green)
तत्व:-वायु
फायदा:- 7 चक्र के साथ जुड़ाव हमें दूसरों से जोड़ता है।
बीज मंत्र :- YAM
5.विशुद्ध चक्र (Throat Chakra )
विशुद्ध चक्र हमारे सरीर का पांचवा उर्जा का केंद्र है जो की कंठ में विराजमान होता है | यह चक्र संचार और सत्य से जुडा हुआ है | इसी चक्र की वजह से हम दुसरो की बातो को गहराई से सुन व् समझ पाते है |
स्थान :-गला
रंग :- नीला
तत्व :- आकाश
फायदा :- यह चक्र हमे सच्चाई और सवांद शक्ति को प्रभावशील बनाता है | इस चक्र के असक्रिय होने पर विपरीत प्रभाव देखने को मिलता है |
बीज मंत्र :- HAM
6.आज्ञा चक्र(Third Eye Chakra )
यह चक्र हमारे शरीर का छठा चक्र है जिसे तीसरी आंख भी कहते हैं। यह चक्र हमारी बुद्धि, अंतर ज्ञान और आध्यात्मिक विचारों से जुडा हैं। इस चक्र के सक्रिय होने पर चीजे बाहरी नहीं अंदर की दृष्टि से दिखना शुरू हो जाती हैं।
स्थान :- दोनों आँखों के बीच की जगह
रंग :- गहरा नीला
तत्व :- प्रकाश
फायदा :- इस चक्र के सक्रिय हो जाने पर हमें अपने विचारों में स्पष्टता नजर आती हैं।
बीज मन्त्र :-OM
7. सहस्रार चक (Crown chakra )
यह चक्र आध्यात्मिक ऊर्जा का सबसे बड़ा केंद्र माना गया है और हमारा अंतिम चक्र हैं।
यह आत्मज्ञान और चेतना का प्रतिक हैं।
स्थान :-सिर का शीर्ष
रंग :- बेगनी या स्वेत
7 चक्र के माध्यम से हम अपनी आंतरिक शक्ति को जान सकते हैं।
7 चक्र का अभ्यास हमें जीवन में सकारात्मकता लाता है।
7 चक्र की व्याख्या से जीवन में संतुलन और ऊर्जा की प्रवाह बढ़ता है।
7 चक्र का ध्यान और आंतरिक जागरूकता में बढ़ोतरी होती है।
7 चक्र का अभ्यास हमें हमारे अंदर की शक्तियों को पहचानने में मदद करता है।
7 चक्र के माध्यम से हम सभी को जोड़ने का प्रयास कर सकते हैं।
7 चक्र हमारे जीवन को सकारात्मकता से भर देते हैं।
7 चक्र का संतुलन हमारे जीवन में सुख और शांति लाता है।
7 चक्र के माध्यम से हम आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
7 चक्र का सही अभ्यास हमें सही दिशा में ले जाता है।
7 चक्र के माध्यम से हम अपनी भावनाओं को संतुलित कर सकते हैं।
7 चक्र का ध्यान हमें मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
7 चक्र के अभ्यास से स्वास्थ्य और खुशी में वृद्धि होती है।
7 चक्र के माध्यम से हम अपने जीवन में नई ऊर्जा भर सकते हैं।
शरीर में ऊर्जा प्रवाह को संतुलित करने के लिए 7 चक्र महत्वपूर्ण हैं।
7 चक्र के साथ ध्यान से जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त की जा सकती है।
7 चक्र का प्रत्येक केंद्र हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है।
तत्व :- ब्रह्मांड की ऊर्जा
फायदा :- इस चक्र के सक्रिय हो जाने पर प्रमाण से लगाओ और आत्मज्ञान का प्रभाव देखने को मिलता है।
चक्रो को सक्रिय करने के लिए
7 चक्र का ध्यान करने से ऊर्जा जागृत होती है।
हर चक्र का ध्यान करने से उनकी ऊर्जा को जागृत किया जा सकता हैं।
हर चक्र के बीज मन्त्र का उच्चारण करने से उनको सक्रिय किया जा सकता हैं।
योगा करने से भी सभी चक्रो को सक्रिय किया जा सकता हैं।
आगे आने वाली ब्लॉग पोस्ट में हम सभी चक्रो को विस्तार से पढ़ेंगे।
कई बार हमारे मन में यह बात आ जाती हैं की हमें ये विशेष सेवा इसलिए दी गई हैं। हम औरो की तुलना में ज्यादा बुद्धिमान, पढ़े-लिखें या फिर ज्यादा बड़े इंसान हैं या हमारे अंदर कोई विशेष योग्यता हैं।
सेवा की जरूरत
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हमें लगता हैं की केवल हम ही इसके हक़दार हैं। ये बात हमारे मन आज जाती हैं और हम गलतफहमी के शिकार हो जाते हैं।
जबकि सेवा तो सतगुरु का सौगात में दिया हुआ एक अहम् तोहफा हैं। एक ऐसा तोहफा जिसका फैसला केवल गुरु ही कर सकते हैं की किसे, कब, और क्यों देना होता हैं।
सेवा कोई पुरुस्कार नही वो कोई ओहदा नहीं और नहीं सेवा प्रदर्शन करने की कोई चीज हैं। यह तो गुरु की हम पर दया होती हैं। हमें सेवा करने का मौका देता है वरना सेवा करना हर किसी के भाग्य की बात नहीं होती हैं।
देश और विदेश के सभी सत्संग घरो में एक बात आम तोर पर देखने को मिलती हैं। वहाँ पर सेवा का कोई विशेष क्लास देखने को नहीं मिलती। ऊंच -नीच का कोई भाव नहीं होता, ना ही पढ़े -लिखें या पैसे का घमंड।
जज और वकील ट्रैफिक की सेवा करते हुए नजर आ रहे होते हैं।
फौजी अफसर लंगर बर्ताने और बर्तन सफाई की सेवा करते है।
बड़े-बड़े लोग मिट्ठी सिर पर उठा रहे होते हैं। वो भी बहुत प्यार और विनर्म भाव से सभी मिलकर सेवा करते हैं।
यह सब प्यार भरा नजारा देख कर समझ आता हैं की सेवा हमें किसी पद या किसी प्रतिभा के कारण नहीं मिली होती हैं। यह तो उस आत्मा की अंदरूनी विन्रमता, प्रेम और सबसे बड़ा सतगुर की दया से मिलती हैं।
जो भी सेवा हमें सतगुरु के द्वारा बक्शी जाती हैं। उस समय वोही सेवा हमारे लिए जरुरी होती हैं। वह हमारे अंदर प्रेम भावना जगाने, हमारे अंदर छिपे बैठा अहकार, हमारे अंदर श्रद्धा भाव लाने और जीवन को नया आकार देने का काम करती हैं। इसलिए यह जरुरी है सतगुरु हमें जो सेवा की बक्सीश करते हैं। उसे हमें बड़े प्रेम भाव से अपने गुरु की रजा समझते हुए करनी चाइये, क्यूंकि उसी में हमारा भला छिपा होता हैं।
सतगुरु हमें क्या देख कर बक्शिश करते हैं ये एक रहस्य है और सायद हमेशा बना रयेगा। अगर इसे जाना है, तो सतगुरु के बताये रास्ते पर चलते जाओ। सतगुरु एक दिन आपको खुद फील करा देंगे सब कुछ।
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सेवा ना कभी ख़त्म होती है, और ना किसी के लिए रूकती हैं। ना कभी रुकेगी। इसको तो समय निकाल कर करते रहना चाइये।
जो आज थक इसके साथ जुड़ा है और साथ खड़ा रहा। उसका जीवन जरूर बदला हैं।
सेवा असल में क्या हैं?
क्या किसी को पैसे दे देना, खाना खिला देना या कोई और अच्छा काम कर देना ये सब सेवा हैं। बिलकुल नहीं।
जहां कोई भी काम जब प्रेम, विन्रमता और नी:स्वार्थ भाव से किया जाता हैं वो ही असली सेवा होती हैं। या मायने नहीं रकता की काम छोटा किया है या फिर बड़ा।
सच्ची सेवा वोही होती है। जहाँ पर देने वाला भूल जाये।
सेवा अक्सर सभी धार्मिक स्थनों पर चलती रहती हैं। ये भी जरुरी नहीं की सेवा केवल धार्मिक स्थान पर जाकर ही की जा सकती हैं। ऐसा बिलकुल भी नहीं हैं।
सेवा हम कही भी कर सकते हैं। अपने समाज में रहते हुए बस जरुरतमंद की सहायता करना भी सेवा के एक अहम् हिस्सा हैं। सेवा करते टाइम मन में किसी भी तरह का कोई गलता विचार नहीं आना चाइये। जैसे की – सेवा के बदले कुछ इच्छा मन में आना, ना किसी तरह का किसी के धन्यवाद की इच्छा रकना।
सेवा वो नहीं दिखावे के लिए की जाये।
सेवा वो होती हैं जो अंदर से एक प्रेम बहता हो।।
सेवा का भाव
सेवा का भाव सभी लोगो में एक समान नहीं होता हैं। सेवा में ( मैं ) शब्द का अस्तित्व समाप्त हो जाता हैं। क्योंकि वहाँ मैं नहीं रहता वो दुसरो के लिए समर्पित हो जाता हैं। जब हम की मदद कर रहे होते हैं और वहाँ बदले में कोई इच्छा नहीं होती तो वो सेवा का रूप ले लेते हैं। वहाँ पर अहंकार का नाश हो जाता हैं।
तब हम अपने वहम को समाप्त कर रहे होते हैं। वहाँ से शुरू होती है एक नया जीवन की शुरुआत।
वही से हमारे अंदर दयालुता, विन्रमता,अपने सतगुरु व सेवा के प्रति सच्चा प्रेम जागता है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से सेवा
सनातन धर्म में कहा गया हैं।
“सेवा तब तक शुद्ध हैं, जब तक वो निरलाभ हैं।”
सेवा हमें फूलों की तरह करनी चाहिए। जैसे फूल बिना कुछ बोले सबको खुश्बू देते हैं।
सेवा इंसान को इंसान से जोड़ थी हैं और आपस में प्रेम भाव को बढ़ाती हैं। सेवा के साथ साथ ध्यान भी करें और भी बेहतरीन रिजल्ट आएंगे।
भगवान का बहुत धन्यवाद जो हमें हसने के लिए बहुत बहाने दिए है।
आज की भाग दौड़ भरी जीवन में ” बेफिक्र होकर जीना ” एक सपने जैसा ही हैं।
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भविष्य की चिंताये,रोज के काम की फ़िक्र, समाज से जुडी आशा ये सब मिलकर हमें इस तरह जकड लेती हैं की हम जी तो रहे हैं, पर पूरी तरह से नहीं।
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हम काम तो कर रहे होते हैं, लेकिन हम चिंताओं के साथ जोकि अच्छा नहीं होता हैं। जब तक हम बेफिक्र नहीं होंगे, तब तक कोई काम अच्छे नहीं कर पाएंगे।
परमात्मा का बहुत- बहुत शुक्र हैं की हमारे पास हसने और हँसाने के बहुत से बहाने हैं क्योंकि हसना हमारे जीवन में खुशियाँ भर देता हैं।
बेफिक्र होकर जीने से चिंताए दूर हो जाती हैं, भले ही कुछ सुहावने पलों के लिए हो। तनाव भी कम हो जाता हैं। ऐसा करने से हमारे अंदर पॉजिटिवविटी आने लग जाती हैं।
बेफिक्र होकर जीने व हसने से हम रिश्ते के बहुत को बहुत अच्छे से निभा सकते हैं, क्योंकि ऐसा करने से हम एक दूसरे के करीब आ जाते हैं।
हमारे मुस्कुराने क्या पता दूसरे के लिए भी अच्छा हो,और वो भी हमें देख कर मुस्कुराने लगे। अपनी चिंता को कुछ पल के लिए भूल जाये।
क्या असल में बेफिक्र होकर जीना संभव हैं। इसका उतर है, बिलकुल हाँ।
अगर हम जीवन में बेफिक्र होकर जीना सीखे, तो तनाव, चिंता और निराशा के लिए एक रामबाण दवा हैं।
जब हमारा मन अच्छा होता हैं तो हम सभी समस्याओ से लड़ पाएंगे और कुदरती तोर पर दर्द से राहत की दवा पैदा होती हैं।
अगर हमें मुस्कान के साथ स्वीकार करना आ जाये तो
बेफिक्र होकर जीने का मतलब
बेफिक्र होकर जीने का मतलब ये बिलकुल भी हैं, की अपनी जिम्मेदारीयों से दूर भागे।
इसका मतलब हैं, की हमें भविष्य की चिंता किया बिना या किसी भी तरह का फ़िक्र किये बिना आगे बढ़ना चाइये।
इसका असली अर्थ हैं, की -अंदर की शांति को बनाये रखे और बेफिक्र होकर जीना सीखे।
अपने आप पर भरोशा रखना चाहिए,भले ही रास्ता दिखाई दे या ना दे।
हम ना जाने क्यों अनजाने कल की फ़िक्र में, आज की खुशियों और शांति को खो देते हैं।
जो हो रहा है उसे होने दे, और उसको पूरी तरह स्वीकार करना सीखे।
बेफिक्र जीवन जीना क्यों जरुरी हैं?
मानसिक शांति
चिंता हमेशा दिमाग़ को कमजोर बनाती हैं। बेफ़िक्र होकर जीना हमें इस समस्या से दूर रकती हैं।
रिश्तो में मिटास
जब हम अंदर से शांत व हलके होते हैं, तो रिश्तो में अपनापन महसूस होता हैं।
स्वस्थ शरीर
जब मन अशांत व किसी तरह की चिंता होती हैं, तो इसका सीधा असर हमारे दिमाग़ और शरीर दोनों पर पड़ता हैं। बेफिक्र होकर जीना एक स्वस्थ शरीर को जन्म देता हैं।
बेफिक्र होकर कैसे जिए?
किसी की लाइफ को देखकर अपनी तुलना उससे मत करो। ऐसा करना से हम अपने आप को निचा समझने लग जाते हैं।
ये हमारी आत्मा की भाषा हैं। कभी दिल में हल चल बनकर उठ जाती हैं तो कभी खामोशी में राहत बनकर बैठ जाती हैं।
रोजाना meditation करने पर फोकस करें। ये आपको वर्तमान में लाता हैं।
जो जैसा हैं उसको वैसे ही स्वीकार करना सीखे।
छोटे-छोटे पलों का आनंद लेना सीखे। सुबह की ठंडी-ठंडी हवा,सुबह की चाय ये सब करें। आपको अच्छा लगेगा।
जीवन की असली आजादी ये ही हैं, जब हम बिना किसी डर, चिंता, अतीत व भविष्य की फ़िक्र किये बिना जीते हैं।
आइये
आज से थोड़ा हल्का जिय।
थोड़ा सा सच्चा जिये,
थोड़ा सा बेफिक्र होकर जिय।।
परमात्मा को पाने के बहुत से रास्ते होते हैं, लेकिन मैंने हंसी और मैडिटेशन का रास्ता अपनाया हैं।
जो भी हुआ,बहुत अच्छा हुआ, जो भी रहा हैं, बहुत अच्छा हो रहा हैं, जो आगे होगा हो भी बहुत अच्छा होगा।
आज की रफ़्तार भरी जीवन में हम ये सब अनदेखा कर रहे, और दुसरो को ख़ुश करने में लगे रहते हैं। अपनी असली खुशी को हम दूसरे के लिए दबा के लिए बैठ जाते हैं।
खुद से जुड़ने का एक रास्ता
रोजना खुद से पूछना-क्या में वो ही जिंदगी जी रहा हूं जो जीना चाहता था।
प्रकृति को समय देना शुरू करें। खुले आसमान, हवा,हरयाली में हमारे अंदर की सच्चाई सामने आती हैं।
जो आप महसूस करते हैं, उसे लिखना शुरू करें। लिखने से मन खुलता हैं और आत्म-विश्वास आता हैं। ऐसा करने से आप बिना डर के अपने मन की बात को कह पाते हो।
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ये सभी धर्म और पूजा से अलग होता है। ध्यान एक प्रक्रिया होती है जिसे बार-बार करने से साधक को अंदर की ओर ले जाता है। ध्यान हमें खुद से जुड़ने का अवसर प्रदान करता हैं।
meditation
ध्यान क्यों करें ?
ध्यान वह प्रक्रिया या अवस्था है।जहां पर हमें वापस खुद से मिलवाने का रास्ता है। क्योंकि हम अंदर से बिल्कुल खाली हो चुके है। अगर है तो बस केवल आशा और मुश्किले।
इससे हम अपने अंदर के गहरे रहस्यों से बिल्कुल अनजान है। हम जितना इस बाहरी संसार को बदलने में लगे रहते हैं। उससे कहीं ज्यादा जरूरी होता है।
हम अपने अंदर छिपे रहस्यों और अपने अंदर असीमित पावर के भंडार को जानने की कोशिश करें। हमें ध्यान करना चाहिए अपने बेहतर जीवन की ओर बढ़ने के लिए।
मैडिटेशन (ध्यान)अंदर की यात्रा
आज की दुनिया मुस्किलो, भाग्दोद व् जिम्मेदारियो से बरी हुई है। हर दिन मनुष्य के जीवन में काम, आशाये, भावनाए व् जिम्मेदारी में उलझे बैठे है।
हम बाहरी दुनियावी मान-सम्मान, सुख-सुविधा, और सफलताओ के पीछे भागते रहते है, जबकि असली पहचान हमारे अंदर छिपी बैठी है उसे हम भूल गए है।
इन सभी के कारण हम अपनी मन की शांति को घूम कर बैठे इसी शांति की तालश हमे फिर से मैडिटेशन यानि की ध्यान की ओर ले जाती है।
ध्यान कोई न्यू विचारधारा, प्रक्रिया नहीं है, यह तो सदियों से चली आ रही एक पुँरानी साधना है अब तो इस बात को विज्ञान भी मानता है।
हिन्दू धर्म में हजारो साल पहले से ही ध्यान साधना क प्रचलन है।
ध्यान कैसे करें? (मार्गदर्शन )
ध्यान करना बहुत सरल होता हैं, लेकिन शुरुआती दिनों में मन को समझाना थोड़ा कठिन सा लगता हैं।
1.स्थान कैसा होना चाहिए।
एक शांत जगह चुने। ऐसी जगह बैठ जाये जहाँ किसी तरह का भी शोर-गुल ना हो।
मोबाइल से दुरी बना के रखे या फिर साइलेंट पर रखे।
2.कमर सीधी होनी चाहिए।
आप जमीन पर बैठ सकते हो या कुर्सी पर अपनी सुविधा अनुसार चयन कर ले।
बस शर्त एक हैं रीढ़ की हड्डी सीधी होनी चाहिए। अब अपनी आंखे धीरे से बंद कर ले।
3.साँसो पर ध्यान दे।
सीधा बैठने के बाद अब अपने सांस की लेने और छोड़ने की प्रक्रिया को महसूस करें।
तरह तरह के विचार आने शुरू हो जायगे पर उन्हें रोके नहीं आने दे।
बस आप इस प्रक्रिया को करते रहिये, तो आपका मन शांत होने लगेगा और विचार आने बंद हो जायगे।
शुरुआती दिनों में 5 मिनट ही करें धीरे -धीरे समय बढ़ाते रहिये। एक दिन दिन में 15-30 मिनट में बहुत असरदार होता है।
बाकी आप समय को 60 मिनट या इससे अधिक भी बढ़ा सकते हैं।
ध्यान का प्रकार
ध्यान करने की बहुत सी प्राचीन विधियां है जो निम्न प्रकार हैं।
इस प्रक्रिया में किसी बाहरी आलबन जैसे की किसी मूर्ति, भजन कीर्तन या ज्योति पर ध्यान केंद्रित किया जाता हैं।
2.सुक्षम ध्यान
इस प्रक्रिया में आंखे बंद करके किसी रूप या चक्र का मानसिक दर्शन किया जाता हैं और साथ में मंत्रो का जाप किया जाता हैं।
3.कारण ध्यान
इस प्रक्रिया में ईस्ट के दर्शन के साथ -साथ मंत्र की ध्वनि पर धियान देता हैं।
यह सूक्ष्म ध्यान की परिपक्व अवस्था होती है।
ध्यान करने के अन्य प्रकार
साँसो द्वारा
अपनी अपनी साँसो को महसूस करना मतलब की साँसो के लेने-छोड़ने की प्रक्रिया की अनुभूति करना।
मंत्र जाप
इस प्रक्रिया में किसी मंत्र या शब्द का बार – बार उच्चारण करना और उस शब्द की ध्वनि पर फोकस करना। उदाहरण के लिए ॐ या फिर कोई बीज मंत्र आदि।
प्रकृति
किसी पार्क, पहाड़ी या खुली जगह में बैठ कर पेड़, आकाश या हवा आदि प्रकृति चीजों की अनुभूति करना।
शरीर को देखकर
साधक चाहे तो यह प्रक्रिया भी ध्यान करने हेतु अपना सकता है।
इसमें शरीर के अंगों की अनुभूति करनी होती हैं, और सारे तनाव से मुक्त होना पड़ता हैं।
नोट :- ध्यान करने की और भी बहुत प्रक्रिया होती हैं। आगे के लेख में पढ़ने को मिलेगी।
ध्यान का असर
ध्यान का असर हमें तुरंत नहीं दिखाई देता है इसमें कुछ समय बाद ही असर देखने को मिलता है।
यह एक यात्रा है जिसमें रोज का अभ्यास व धेर्य चाहिए।
ऐसा नहीं है कि इसे करने से लाभ नहीं होगा रोजाना थोड़ा-थोड़ा समय देने से आप धीरे-धीरे अंतर महसूस करेंगे।
ध्यान हमें अपने मन की सोच को फिट रखने के लिए जरूर करना चाहिए। शुरुआती दिनों में मन बहुत भागता है लेकिन अगर आप लगातार अभ्यास करेंगे तो आपकी बात मनमानी लगा और शांत हो जाएग।
ध्यान करते समय कुछ बातें याद रखें
खुद की तुलना किसी से नहीं करें, हर व्यक्ति का ध्यान करने का अनुभव व तरीका अलग हो सकता हैं।
अगर संभव हो सके तो एक ही समय पर रोज ध्यान करने की आदत डालें।
ध्यान करने से पहले पेट पर भोजन न करें क्योंकि खाली पेट ध्यान करने से बेहतर अनुभूति होती है।
ध्यान हमेशा शांति प्रिया जगह पर ही करना चाहिए। जिससे हमारा मन इधर-उधर नहीं भागता।
ध्यान करने से हमारे जीवन में बदलाव
एकाग्रता
ध्यान की प्रक्रिया अपनाने से दिमाग की फोकस करने की शक्ति बढ़ती शुरू हो जाती है।
जिससे सभी तरह के काम या किसी रचनात्मक कामों में सुधार देखने को मिलता है।
नींद
ध्यान वरदान है उन लोगों के लिए जो लोग अच्छे से सो नहीं पाते। जैसे ध्यान करने से मन शांत होगा तो नींद अच्छी आने लगेगी।
भावनात्मक संतुलन
ध्यान से हम अपनी भावनाओं को पहचान करने में मदद मिलती है और स्वीकार करने की शक्ति मिलती हैं।
मन शांति
जब हम नियमित रूप से ध्यान करने में लग जाते हैं तो दिमाग की नेगेटिव धीरे-धीरे खत्म होने लग जाती है। जिससे तनाव, चिंता और गुस्सा कम हो जाता हैं, और एक टाइम पर आकर ना के बराबर हो जाता हैं।
लिखते – लिखते “आख़री में– “
ध्यान जीवन का सहज वह कठिन दोनों प्रकार का हिस्सा हो सकता है।
इसे करने के लिए कोई योग्यता व कोई उम्र नहीं चाहिए बस चाहिए तो रोज कुछ पल खुद को देने एक इच्छा होनी चाहिए।
हमें एक बेहतर जीवन की ओर बढ़ने मैं खुद को समझने के लिए ध्यान करने की जरूरत है।